पोलैंड में स्टूडेंट्स को पिता की रचना गाते देख भावुक हुए अमिताभ, बोले- पहला कदम रखते ही व्रोकला शहर से प्यार हो गया था - NEWS E HUB

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Wednesday, 22 July 2020

पोलैंड में स्टूडेंट्स को पिता की रचना गाते देख भावुक हुए अमिताभ, बोले- पहला कदम रखते ही व्रोकला शहर से प्यार हो गया था
















Amitabh Bachchan says, I was enamoured by the City of Wroclaw from the moment i stepped onto its soil

मुंबई के नानावटी अस्पताल के कोविड आइसोलेशन वार्ड में भर्ती अमिताभ बच्चन का वहां आज (बुधवार) 12वां दिन है। इससे पहले मंगलवार शाम को उन्होंने सोशल मीडिया पर पोलैंड के व्रोकला शहर का एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें कुछ स्टूडेंट्स उनके पिता हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध रचना 'मधुशाला' का पाठ करते दिखे। इसी वीडियो के बारे में उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी लिखा, और उस शहर से जुड़ी अपनी यादों को शेयर किया।

बिग बी की मानें तो वे इस वीडियो को देखने के बाद इतने इमोशनल हो गए कि अपने आंसू नहीं रोक पाए। ब्लॉग में अमिताभ ने खुद को इस बात के लिए खुशनसीब बताया कि वे हरिवंशराय बच्चन के बेटे हैं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पहली बार व्रोकला शहर में पैर रखा था उसी दिन उन्हें इस शहर से प्यार हो गया था। क्योंकि वहां उन्हें बेहद अपनापन मिला था।

वीडियो को देख मेरी आंखों में आंसू आ गए

अमिताभ ने ब्लॉग को शुरू करते हुए लिखा, 'व्रोकला शहर और उसके महापौर के इस काम को देख मेरी आंखों में आंसू आ गए... इस मुश्किल समय में बाबूजी के लिए इतनी ज्यादा गरिमा और सम्मान रखना मेरी भावनात्मक संतुष्टि से परे है... उनका बेटा होकर मैं भाग्यशाली महसूस करता हूं... मैं भाग्यशाली हूं जो वे अपने पीछे सम्मान और मूल्यों की इस तरह की विशाल विरासत को पीछे छोड़कर गए हैं... मैं भाग्यशाली हूं कि वे दुनियाभर के साहित्यिक मूल्यों में दिए गए विचारों और आभारों को समझते हैं और उसका सम्मान करते हैं।'

'इन छात्राओं ने बाबूजी की मधुशाला का उसी धुन में पाठ किया जिस तरह मेरे पिता कवि सम्मेलनों, काव्यात्मक संगोष्ठियों में गाया करते थे और सुनाते थे... विदेशी भाषा बोलना एक मुश्किल काम है, लेकिन इसे सिर्फ बोलना ही नहीं बल्कि सुनाना और इसे इसके लेखक के अंदाज में गाना एक आश्चर्य है...'

'मुझे इस शहर से उसी वक्त प्रेम हो गया था, जब मैंने इसकी धरती पर पैर रखा था... लोगों से मिला प्यार, उनकी मेहमाननवाजी, गर्मजोशी वाला उनका साथ और एक बाहरी व्यक्ति के लिए उनका सम्मान बिल्कुल असाधारण था... उन्होंने मेरे साथ एक बाहरी, एक पर्यटक, एक आगंतुक की तरह व्यवहार नहीं किया था... उन्होंने मेरे लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे... उन्होंने मुझे परिवार दिया... वे मेरे साथ एक हो गए...'

'... मुझे उस शहर और अड़ोस-पड़ोस के लोगों की याद आती है... उनका स्वागत गर्मजोशी से भरा था और इसलिए एकबार फिर उनके बीच जाने की इच्छा है... मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ही ऐसा कर सकता हूं... मुझे वहां हमेशा ऐसा लगता था जैसे मैं अपने घर पर हूं... व्रोकला आपका धन्यवाद... शहर के मेयर आपको भी धन्यवाद... और पौलेंड आपका भी धन्यवाद।'

आगे उन्होने लिखा, 'जब कभी एकांत के किनारों में मैं खुद के साथ बैठकर बात करता हूं... तो विचारों की भीड़ आ जाती है... जिनमें से कई पर ध्यान देने की जरूरत होती है लेकिन कभी नहीं दिया जाता... मैं सोचता हूं लाखों लोग मेरी तारीफ करते हैं और मैं बदले में उन्हें क्या देने में सक्षम हूं...'

'क्या कभी वापस देना दिए गए मूल्य के बदले परस्पर लेन-देन माना जा सकता है... क्या कभी वापस देना अनिवार्य हो जाता है... मैं सिर्फ देना चाहता हूं... वापस करने के लिए देना स्वार्थ की तरह देखा जाएगा... इसलिए दें, लेकिन वापस देने के बारे में सोचे बिना दें... किसी को कुछ लौटाना अपने साथ एक बदसूरत विषय भी लाता है... ‘return’ इसकी स्पेलिंग भी गलत है, टर्न करना सही नहीं है... 'रिटर्न' किसी 'टर्न' को फिर से दोहराना है... नहीं ये सही नहीं है...'

... सिर्फ किसी चीज को वापस पाने की अपेक्षा में पीछे घूमकर नहीं देखें... करो और फिर करो... आगे देखो... उसके भी आगे देखो... देखने के बारे में सोचो भी मत... बस आगे बढ़ते रहो... घूमते रहो और आगे बढ़ते जाओ, इस बारे में सोचे बिना कि अभी क्या किया गया था... जो किया गया उसका मूल्यांकन होगा बस... मूल्यांकन में बस संख्या और विभाजन और अंक और डिग्री मिलते हैं... क्या डिग्री सचमुच जीवन में 'दिए गए' का मूल्यांकन कर सकती है... क्या उसे संख्यात्मक शब्दावली से चिन्हित किया जा सकता है... बस नंबर देने के विचार ने मुझे बगावती बना दिया... मैंने जो किया वो कर दिया...

'उन बातों के बारे में फिर से पीछे मुड़कर देखना मेरी खुद की अनैतिक धुलाई होगी... मैं तो मानकों के बारे में कहने जा रहा हूं... लेकिन यह भयानक होगा... एक मानक? कोई कैसे मानक के बारे में बताने की हिम्मत कर सकता है... मानक गुणवत्ता का स्तर ग्रेड डिग्री क्षमता है... देना क्षमता नहीं हो सकती... नहीं, मेरे लिए तो नहीं... अगर मेरे दिए को ग्रेड दिया जाए तो यह मेरी आत्मा को नष्ट कर देगा... मेरी आत्मा... मेरा सबकुछ... मेरी सबसे प्रिय दोस्त और मेरे शरीर का एक हिस्सा... एक जो मेरे साथ... अनंत काल तक बाकी रहेगा...'

आगे उन्होंने लिखा, 'वे मुझे गाली देते हैं और जो मैंने नहीं किया उसके लिए मुझे शर्मसार करते हैं... उन्होंने मुझे कास्टाइज किया... शब्दकोशों की दुनिया में इस शब्द की सही स्पेलिंग नहीं लिखी गई है, लेकिन इसका अर्थ सुनाई देता है... उनकी नजर में मैंने जो किया है, उसके लिए वो मुझे सेंसर करते हैं.. वे दुर्भावना से गुमराह कर रहे हैं... उनके एजेंडे में निहित स्वार्थ भी समाहित है...'

'स्पष्टीकरण देना एक तरह से पीछे हटना है... मैं तेज गति से आगे निकलने के लिए कुछ मामलों में पीछे हट सकता हूं... लेकिन यह लड़ाई होगी... मैं कोई युद्ध मशीन नहीं हूं...'

'...इसलिए वे ऐसा करते हैं और असत्य और सुविधाजनक अप्राप्य अस्तित्व में ही रहते हैं... यहां तक कि उनकी मृगतृष्णा भी भ्रम से परे है... क्या वे धन्य हो सकते हैं... वे हमेशा खोज में ही रहेंगे और उन्हें कुछ नहीं मिलेगा...'

...दया...'प्रेम में बिना किसी बाधा के बंधन होता है... ये किसी को खोजना या पाना नहीं है... यह सीमित है... और वो यहां आपके लिए है...'

परिवार के सभी सदस्यों की हालत ठीक

मंगलवार शाम को नानावटी अस्पताल में भर्ती अमिताभ बच्चन और उनके फैमिली मेंबर्स की हालत को लेकर नया अपडेट आया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक परिवार के चारों सदस्य (अमिताभ, उनके बेटे अभिषेक, बहू ऐश्वर्या और पोती आराध्या ) एकदम ठीक हैं और बुधवार को एक बार फिर उनका कोरोना टेस्ट किया जाएगा। ताकि पता लगाया जा सके कि वे कोविड से फ्री हुए या नहीं।




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