इंडोनेशिया में डेंगू के मामलों को घटाने के लिए नया प्रयोग किया गया है। मच्छरों में खास तरह बैक्टीरिया को इंजेक्ट किया गया जो डेंगू के वायरस को फैलने से रोकती है। इन मच्छरों को खुले में छोड़ दिया गया है। रिसर्च में सामने आया कि डेंगू के मामलों में 77 फीसदी कमी आई।
डेंगू का वायरस संक्रमण के बाद बुखार और शरीर में दर्द की वजह बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगू का वायरस हर साल 40 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है और 25 हजार लोगों की इससे मौत हो जाती है।
ऐसे हुई रिसर्च
इस पर रिसर्च करने वाली इंडोनेशिया की योग्यकार्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्चर आदी उतरानी के मुताबिक, यह बड़ा बदलाव लाने वाली खोज है, उम्मीद है इससे डेंगू के मामले घटेंगे। पिछले तीन साल में ऐसे 3 लाख मच्छर छोड़े गए जिसमें वोल्बाचिया नाम के बैक्टीरिया को डाला गया था। इसे शहर के अलग-अलग में छोड़कर असर देखा गया। रिसर्च में सामने आया योग्यकार्ता शहर में सैकड़ों डेंगू के मरीज घटे।
इंडोनेशिया में हर साल डेंगू के 70 लाख मामले
रिसर्चर्स ने यह ट्रायल वर्ल्ड मॉक्स्यूटो प्रोग्राम के साथ मिलकर किया है, जिसके नतीजे इसी हफ्ते जारी किए गए। यहां ट्रायल करने की एक बड़ी वजह डेंगू के अधिक मामले हैं। इंडोनेशिया में हर साल डेंगू के 70 लाख मामले सामने आते हैं।
ऐसे घटते हैं डेंगू के मामले
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंसान को संक्रमित करने का काम मादा मच्छर करती है। नए छोड़े गए ना मच्छर मादा के साथ मेटिंग करते हैं। मादा मच्छर का लार्वा इंसान को काटने लायक बनने से पहली ही मर जाता है। इस तरह मादा मच्छर की संख्या नहीं बढ़ पाती और डेंगू के मामले घटते हैं।
50 सालों में 30 गुना बढ़े डेंगू के मामले
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पिछले 50 सालों में डेंगू के ममाले 30 गुना तक बढ़े हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए वोल्बाचिया बैक्टीरिया को पहली बार मच्छरों में इंजेक्ट करके ऑस्ट्रेलिया में छोड़ा गया था। पहला प्रयोग 2018 में हुआ था। लेकिन सामान्य क्षेत्र और जहां ये मच्छर छोड़े गए उनके बीच तुलना नहीं की गई थी, इसलिए प्रयोग से जुड़े सटीक आंकड़े सामने नहीं आ पाए थे।
वियतनाम में भी हुआ प्रयोग
इंडोनेशिया में हुए प्रयोग का एक हिस्सा वियतनाम में भी किया गया है। रिपोर्ट में सामने आया कि डेंगू के मामलों में 86 फीसदी तक कमी आई। दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया के इस प्रयोग को 'गोल्ड स्टैंडर्ड ट्रायल' कहा है।
वर्ल्ड मॉस्क्यूटो प्रोग्राम के डायरेक्टर और माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्कॉट ओ'निल के मुताबिक, इंडोनेशिया में जो परिणाम सामने आए हैं, हम ऐसी ही उम्मीद कर रहे थे। हमारे पास इस बात के प्रमाण हैं कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाला तरीका सुरक्षित है।
इंडोनेशिया में कोरोना के कारण कुछ ही महीने पहले ट्रायल खत्म किया गया है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्कॉट का कहना है कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया 60 फीसदी तक कीट-पतंगों में पाया जाता है। इसमें ड्रैगनफ्लाय, फ्रूटफ्लाय शामिल है।
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