हरियाणा के मंत्री अनिल विज तो वैक्सीन की ट्रायल्स में शामिल हुए थे, फिर उन्हें कोरोना कैसे हो गया? - NEWS E HUB

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Sunday 6 December 2020

हरियाणा के मंत्री अनिल विज तो वैक्सीन की ट्रायल्स में शामिल हुए थे, फिर उन्हें कोरोना कैसे हो गया?

हरियाणा के गृह मंत्री (स्वास्थ्य मंत्रालय का भी पोर्टफोलियो) अनिल विज कोवैक्सिन के तीसरे फेज के ट्रायल्स में शामिल होने के 15 दिन बाद ही कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। शनिवार को सोशल मीडिया पर उन्होंने खुद इसकी जानकारी दी। यह भी कहा कि जो लोग मेरे संपर्क में आए हैं, वे भी कोरोना टेस्ट करवा लें।

यह वैक्सीन हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मिलकर बनाया है। इसके साथ ही इस समय देशभर में 25 जगहों पर अंतिम फेज के क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं।

इससे पहले मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी शुक्रवार को वैक्सीन का पहला डोज लगवाने के लिए भोपाल में ट्रायल साइट पर पहुंचे थे। पर डॉक्टरों ने गाइडलाइन का हवाला देकर उन्हें वैक्सीन लगाने से मना कर दिया। दरअसल, उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पहले ही कोरोना हो चुका है। इस आधार पर उन्हें वॉलंटियर बनने के लिए निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार अयोग्य करार दिया गया।

विज के इंफेक्ट होने के बाद कई तरह की बातें हो रही हैं। यह कैसे हो गया? जिन लोगों ने ट्रायल्स में वैक्सीन लगवाया है, उनकी सरकार निगरानी कैसे करती है? इसकी प्रक्रिया क्या होती है? ऐसे ही और भी सवाल…

तो चलिए ऐसे ही सवालों और उनके जवाबों से गुजरते हैं...

सवालः क्या वैक्सीन की ट्रायल्स में शामिल वॉलंटियर्स को कोरोना हो सकता है?

जवाबः हां। यह कोई पहली बार थोड़े ही हुआ है। फाइजर, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका और साथ ही स्पूतनिक वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल्स में शामिल लोग भी कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। यदि ट्रायल्स में शामिल वॉलंटियर्स को कोरोना होगा ही नहीं तो उसका असर कैसे पता चलेगा। यह जरूर है कि इस बार मंत्री कोरोना पॉजिटिव हुए हैं, इस वजह से वैक्सीन को शक की नजर से देखा जाने लगा है।

सवालः वॉलंटियर को कोरोना हुआ, इसका वैक्सीन के असर से क्या लेना-देना है?

जवाबः बहुत लेना-देना है। सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि ट्रायल्स होते कैसे हैं। चलिए भारत बायोटेक के कोवैक्सिन की ही बात कर लेते हैं, जिसके ट्रायल्स में विज शामिल हुए थे। फेज-3 के ट्रायल्स में 25,800 वॉलंटियर शामिल होने हैं। इनमें से आधों को असली वैक्सीन लगेगा और आधों को प्लेसेबो यानी सलाइन का पानी। फिर सभी पेशेंट्स की निगरानी होगी।

अगर प्लेसेबो वाले ग्रुप में कोरोना के पेशेंट्स कम निकले तभी तो वैक्सीन का असर सामने आ सकेगा। यानी जब दोनों ही ग्रुप्स की तुलना होगी, तभी पता चलेगा कि यह वैक्सीन कितनी असरदार है। उदाहरण के लिए, फाइजर ने 44 हजार वॉलंटियर्स को फेज-3 ट्रायल्स में शामिल किया था। कुछ महीने में 170 वॉलंटियर कोरोना पॉजिटिव हो गए। इनमें से 162 लोगों को प्लेसेबो दिया था, जबकि 8 लोग वैक्सीन वाले ग्रुप से थे। इसी से तय हुआ कि वैक्सीन 95% तक असरदार है।

सवालः तो विज को क्या लगा था प्लेसेबो या वैक्सीन?

जवाबः यह तो किसी को भी नहीं पता। वैक्सीन का ट्रायल कर रहे डॉक्टरों को भी नहीं। इसे ही डबल ब्लाइंड और रैंडमाइज्ड ट्रायल्स कहते हैं। किस वॉलंटियर को प्लेसेबो दिया है और किसे वैक्सीन, इसकी जानकारी न तो वैक्सीन लगाने वालों को है और न ही बाकी लोगों को। यह डेटा बेहद गोपनीय रहता है। अंतिम नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलता है कि वास्तविक स्थिति क्या थी। जिन्हें कोरोना हुआ, उन्हें वैक्सीन लगाई गई थी या सिर्फ प्लेसेबो दिया गया था।

सवालः तो अब भारत बायोटेक इस मसले पर क्या कह रहा है?

जवाबः अनिल विज मंत्री हैं, इसलिए भारत बायोटेक ने सफाई दी है। कंपनी ने बयान जारी कर कहा कि कोवैक्सिन के असर की जांच के लिए ही तो क्लिनिकल ट्रायल्स हो रहे हैं। 28 दिन के अंतर से दो डोज दिए जाते हैं। दूसरा डोज देने के 14 दिन बाद ही वैक्सीन का असर पता चलता है।

भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में चल रहे ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. राघवेंद्र गुमास्ता का कहना है कि वॉलंटियर्स को वैक्सीन के दोनों डोज देने के बाद एक साल तक ऑब्जर्वेशन और फॉलोअप किया जाएगा। इसमें पहले 28 दिन तक हर रोज फीडबैक लिया जाता है। दूसरा डोज देने के एक महीने बाद तक हर सात दिन में फीडबैक और फॉलोअप लिया जाएगा।

इसके बाद हर महीने उन्हें अस्पताल बुलाकर उनकी जांच की जाएगी। दरअसल, वैक्सीन ट्रायल में जिन वॉलंटियर्स को डोज दिया जा रहा है। उनकी एक साल तक निगरानी होगी। इस प्रोसेस में तीन महीने के लिए एक नोटबुक वॉलंटियर्स को दी गई है, जिसमें वह हर रोज अपना रुटीन लिखेंगे। इसके आधार पर वैक्सीन के असर का एनालिसिस किया जाएगा।

सवालः और अगर ट्रायल्स के दौरान गड़बड़ी सामने आए तो क्या होता है?

जवाबः इसके लिए CDSCO-DCGI की लंबी-चौड़ी गाइडलाइन है। मरीज को साइट के मुख्य जांचकर्ता या एक्टिव फॉलोअप के दौरान अपनी समस्या बतानी होती है। उस समस्या के आधार पर पहला फैसला उस साइट के मुख्य जांचकर्ता का होता है। यानी जिन 25 जगहों पर कोवैक्सिन के ट्रायल्स चल रहे हैं, वहां हर एक जगह पर एक मुख्य जांचकर्ता और एथिक्स कमेटी रहती है। मुख्य जांचकर्ता इस घटना की जानकारी एथिक्स कमेटी, CDSCO-DCGI, डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड और स्पॉन्सर को देता है।



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