2021 में हमें बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ करना है - NEWS E HUB

Slider Widget

Thursday, 7 January 2021

2021 में हमें बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ करना है

हम सभी के लिए 2020 एक डरावना और घातक साल रहा। लेकिन अब हम उन तकनीकों और विभिन्न साधनों के माध्यम से इस संकट से उबरने को तैयार हैं, जो भविष्य में भी महामारी के खतरे को व्यापक तौर पर कम करने में सक्षम होंगे।

मानव इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि हम यह दावा कर सकते हैं कि हमारे पास वायरस से उत्पन्न समस्या को तेजी से हल करने की क्षमता है। यह दुनियाभर के वैज्ञानिकों, टेक्नोलॉजी के पेशेवरों, बड़ी व छोटी वैक्सीन कंपनियों और फंडिंग संस्थानों के आपसी सहयोग और कड़ी मेहनत से संभव हुआ है।

जब महामारी शुरू हुई थी तो हम सोच रहे थे कि एक वैक्सीन के 12 से 18 महीनों में तैयार होने का अनुमान लगाना ज्यादा आशावादी होना होगा और अब हमने अपनी ही उम्मीदों को पीछे छोड़ दिया है। अब अनेक देशों में वायरस के नए प्रकार के उभरने से चिंता बढ़ी है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमेशा ही वायरस के नए प्रकार उभरते हैं।

इनमें से कुछ से तो अच्छे ही होते हैं, क्योंकि इनसे वायरस खत्म होता है, जैसा सिंगापुर में महामारी के दौरान हुआ था। जबकि कुछ अन्य डी614जी म्यूटेशन या यूके और दक्षिण अफ्रीका में मिले स्ट्रेन जैसे होते हैं जो अधिक संक्रामक होते हैं। अगर वायरस के नए स्ट्रेन पर वैक्सीन कम प्रभावी भी होती है, तो भी हम अब उस स्थिति में हैं कि हम तेजी से नई वैक्सीन बना सकते हैं।

वैक्सीन उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करेगी जिनका टीकाकरण होगा, लेकिन हम नहीं जानते हैं कि कब तक। हो सकता है कि यह कई महीनों या सालों काम करे। क्या वैक्सीन अकेले ही प्रसार रोकने का काम करेगी? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका अब तक जवाब नहीं है। लेकिन, हम जानते हैं कि मास्क, सामाजिक दूरी और सफाई के साथ वैक्सीन निश्चित ही संक्रमण रोक सकती है।
हमारी पूरी जनसंख्या को वैक्सीन लगाने और इसके प्रभावी इस्तेमाल के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है और सरकार महीनों से इसकी तैयारी कर रही है। सरकार साल में दो बार दी जाने वाली पोलियो वैक्सीन के जरिए पांच साल तक के 90 फीसदी बच्चों तक पहुंचने में सक्षम रही है।

जिस तरह के प्रयासों से यह हुआ, वैसे ही प्रयास अब वयस्कों के लिए, विभिन्न चरणों में दोहराने की जरूरत है। हमारी सरकार के पास दुनिया के सबसे बड़े इम्यूनाइजेशन कार्यक्रम का अनुभव है, इसीलिए यह भले ही आसान न हो, लेकिन इसे किया जा सकता है। इस बारे में अनेक सवाल हैं कि इस वैक्सीन का परिवहन कैसे होगा, कैसे लगेगी और कितना पैसा देना होगा। यह महत्वपूर्ण है कि हम भारत के लिए वह वैक्सीन चुनें जो उसके लिए उपयुक्त हो, न कि जो पहले उपलब्ध हो।

सौभाग्य से सभी भारतीय उत्पादक वैक्सीन पर काम कर रहे हैं और ये हमारी मौजूदा व्यवस्था में ही लाकर इस्तेमाल की जा सकती हैं। भारत में बनी वैक्सीन विदेश में बनी वैक्सीन से सस्ती भी होंगी। अब तक सरकार द्वारा शामिल किसी भी वैक्सीन की कोई कीमत नहीं ली गई है और इसे जारी रखा जाना चाहिए।
अभी सरकार के इम्यूनाइजेशन कार्यक्रम से बाहर की, निजी सेक्टर द्वारा विकसित महंगी वैक्सीन को सक्षम लोग लगवा सकते हैं। लेकिन, इसकी अनुमति भी सरकार ही देगी, क्योंकि इससे अमीर लोग तो टीका लगवा लेंगे, लेकिन गरीब ऐसा नहीं कर सकेंगे। दूसरी ओर अगर सक्षम लोग निजी सेक्टर के माध्यम से अपने खर्च पर वैक्सीन लगवाते हैं तो सरकार पर भी भार कम होगा।

जिन वैक्सीन को स्वीकृति मिली है, उनका अब तक गर्भवती महिलाओं, बच्चों व कई अन्य बीमारियों से प्रभावित लोगों पर परीक्षण नहीं हुआ है। बच्चों पर अध्ययन शुरू हो गया है और हमें जल्द ही परिणाम भी मिल जाने चाहिए। लेकिन, हमारे पूर्व के अनुभव के आधार पर इस बात का कोई कारण नहीं है कि बच्चों के लिए इसकी जल्द स्वीकृति न दी जाए। अन्य के लिए, वैक्सीन की स्वीकृति देने या न देने पर फैसले से पहले जोखिमों पर चर्चा जरूरी है।
वैक्सीन लगाने में तेजी से लोगों को सुरक्षा के साथ ही बीमारी के प्रसार पर भी रोक लगेगी, लेकिन हम हर्ड इम्युनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधकता) पर कब पहुंचेंगे? मौजूदा अनुमान 70 फीसदी पर है, लेकिन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर होगा कि वैक्सीन का सुरक्षात्मक प्रभाव कब तक रहता है।

अगर यह कम समय तक रहता है या वायरस अपनी प्रकृति बदलता है तो हमें हरेक को नियमित रूप से दोबारा वैक्सीन देनी पड़ेगी। एक ऐसा वायरस, जो बिना बीमारी के फैल सकता है, उससे पूरी तरह मुक्ति पाना बहुत कठिन है, लेकिन लंबे समय तक प्रभावी एक अच्छी वैक्सीन से यह हो सकता है। अब 2021 में हमें बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ करना है और समस्याओं को सुलझाने और अच्छे भविष्य का रास्ता बनाने की संभावनाओं को तलाशना है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
डॉ गगनदीप कांग, प्रोफेसर, द वेलकम ट्रस्ट रिसर्च लैबोरेटरी, क्रिश्चियन मेडीकल कॉलेज, वेल्लूर

No comments:

Post a Comment