हमारे बीच एक ऐसा रोग पल रहा है, जिसके चलते हर साल 8 लाख लोग सुसाइड कर ले रहे हैं। इसके इलाज में दुनिया को 1 ट्रिलियन डॉलर यानी 75 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। 2021 में कोरोना वायरस की वैक्सीन से ज्यादा लोग इस रोग का इलाज चाहते हैं। ये दावा है, ग्लोबल वेब इंडेक्स यानी GWI की रिपोर्ट 'कनेक्टिंग डॉट 20-21' का।
रिपोर्ट में मेंटल हेल्थ पर एक सर्वे है। दुनिया के 7 देशों के 8 हजार लोगों पर एक ऑनलाइन सर्वे हुआ। इसमें पूछा गया कि लोगों को बेहतर मेंटल हेल्थ चाहिए या कोरोना वैक्सीन तो ज्यादा लोगों ने मेंटल हेल्थ को तरजीह दी। कोरोना वैक्सीन मांगने वालों का रेशियो 30 रहा तो बेहतर मेंटल हेल्थ का रेशियो 31 रहा।
2021 होगा स्वास्थ्य समस्याओं का साल, मेंटल हेल्थ हो जाएगी बदतर
GWI रिपोर्ट कहती है कि कोविड 19 महामारी के चलते मेंटल हेल्थ के मरीज 31% तक बढ़ जाएंगे। इनमें बेरोजगार, सोशल मीडिया पर हर दिन 4 घंटे से ज्यादा वक्त बिताने वाले, दोस्तों या रूममेट के साथ रहने वाले, हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में काम करने वाले और 16 से 24 साल तक लड़कियां ज्यादा होंगी।
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन की रिपोर्ट कहा गया कि कोविड महामारी बाद चीन में 16.5% लोगों में डिप्रेशन, 28.8% लोगों में एंग्जाइटी, 8.1% लोगों में स्ट्रेस के मामले बढ़ गए। 2021 चीन के लिए और ज्यादा खतरनाक होने वाला है।
इंडिया में भी एक स्टडी 19 मार्च से 2 मई के बीच हुई थी। इसमें टेक्नॉलॉजिस्ट तेजस जेएन, एक्टिविस्ट कनिका शर्मा, जिंदल ग्लोबल स्कूल के असिस्टेंट प्रोफेसर अमन ने उन 44 दिनों लॉकडाउन में हुई 338 मौतों का कारण ढूंढा। इनमें अकेलेपन, पैसों की कमी चलते पैदा हुए तनाव के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा थी।
ICMR के पूर्व डीजी डॉ. वीएम कटोच कहते हैं कि 2021 में कोरोना के नए स्ट्रेन, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में फ्लोरोसिस भी बड़ा खतरा बन रहा है। इन सभी चीजों का बुरा असर लोगों के मेंटल हेल्थ पर पड़ता है।
हर 7 में से 1 भारतीय मानसिक रोगी
साइंस जर्नल द लैंसेट के मुताबिक, 19.73 करोड़ भारतीय मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। इनमें से 4.57 करोड़ डिप्रेशन, तो 4.49 करोड़ एंग्जाइटी से जूझ रहे हैं। कोरोना के बाद के आंकड़े अभी नहीं आए हैं। लेकिन, इन आंकड़ों में 20 से 30% की बढ़ोतरी के अनुमान वाली रिपोर्ट्स आ रही हैं।
WHO के मुताबिक, भारत में हर साल एक लाख में से 16.3 लोग मानसिक बीमारी से लड़ते-लड़ते सुसाइड कर लेते हैं। इस मामले में भारत, रूस के बाद दूसरे नंबर पर है। रूस में हर 1 लाख लोगों में से 26.5 लोग सुसाइड करते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2015-2019 के बीच 43 हजार 907 लोगों ने मानसिक बीमारी से तंग आकर सुसाइड किया। अभी 2020 के आंकड़े आने बाकी हैं। अनुमान है कि इस बार चौंकाने वाले आंकड़े आ सकते हैं।
दिमागी बीमारी लड़ने में फिसड्डी हैं हम, मनोचिकित्सकों की फीस भी महंगी
दिमागी बीमारियों से निपटने के इंतजाम में फिलहाल भारत फिसड्डी है। WHO की मानें तो 2017 में भारत के मेंटल अस्पतालों में हर 1 लाख आबादी पर 1.4 बेड थे। जबकि, हर साल 7 मरीज भर्ती होते थे। नोएडा के सरकारी अस्पताल की मनोचिकित्सक कहती हैं, 'लोग अस्पताल आने में कतराते हैं। अनलॉक के बाद मरीज और कम आ रहे हैं।' गाजियाबाद में निजी क्लिनिक चलाने वाले योगेश कुमार कहते हैं कि फोन और वीडियो कॉल पर मानसिक रोगी को समझना कठिन है। कोरोना ने हालात बदतर कर दिए हैं।
नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 में देश में कुल 9 हजार साइकेट्रिस्ट होने की बात थी। PMC की रिपोर्ट में दावा था कि 2020 में भी करीब 10 हजार साइकेट्रिस्ट ही हैं। आबादी के हिसाब से एक लाख पर 3 साइकेट्रिस्ट होने चाहिए यानी देश में 36 हजार साइकेट्रिस्ट।
सरकार का भी इस ओर कम ध्यान है। 2018-19 के बजट में मेंटल हेल्थ पर 50 करोड़ रुपए, 2019-20 में 40 करोड़ और 2020-21 में 44 करोड़ किया गया था। WHO कहता है कि 2017 में एक भारतीय की मेंटल हेल्थ पर सालभर में केवल 4 रुपए ही खर्च होते थे।
सरकारी अस्पतालों में इलाज फ्री है, लेकिन निजी क्लिनिक में मनोचिकित्सक की फीस 1000 से 5000 के बीच है। महीने में अगर मरीज 2 या 3 बार डॉक्टर के पास जाता है तो उसके 3-15 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं।
फिलहाल, खराब मेंटल हेल्थ से उबरने के लिए साइकेट्रिस्ट के अलावा देश में कोई कारगर उपाय नहीं है। वोग मैगजीन की रिपोर्ट ने कहा कि भारत में महज 8 एनजीओ हैं, जो मेंटल हेल्थ पर असरदार काम करते हैं।
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