पिता के शहीद हाेने के बाद मां बनीं कॅरिअर मेकर, 23 साल मेहनत कर बेटे काे बनाया आर्मी ऑफिसर - NEWS E HUB

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Monday, 15 June 2020

पिता के शहीद हाेने के बाद मां बनीं कॅरिअर मेकर, 23 साल मेहनत कर बेटे काे बनाया आर्मी ऑफिसर

















जब हाैसला बुलंद हाे ताे मंजिल अपने आप मिल जाती है। यह बात सेक्टर 9-11 निवासी सुशीला यादव पर सटीक बैठती है। यह कहानी है एक मां के त्याग और जज्बे की। जिसने अपने बेटे काे आर्मी में लेफ्टिनेंट बनाने के लिए दिन रात एक किया। पति के शहीद हाेने के बाद उनका सपना पूरा करने की ठानी। सुशीला के पति चंद्र सिंह आर्मी में लांस नायक थे। वह 7 जुलाई 1997 काे शहीद हाे गए। उस समय उनका बेटा मनाेज केवल दाे साल का था।

सुशीला ने बताया कि उनके पति का सपना था कि उनका बेटा भी आर्मी में जाकर देश की सेवा करे। पति के शहीद हाेने के बाद वह अपने बच्चाें के साथ गांव जीतपुरा से हिसार कैंट क्षेत्र में आई। यहीं रहने लगीं। बच्चों को आर्मी स्कूल में पढ़ाया और लगातार 23 साल मेहनत की। सुशीला यादव ने परेशानियाें का सामना करते हुए अपने बेटे मनाेज की पढ़ाई में कमी नहीं आने दी। लेफ्टिनेंट मनाेज कुमार यादव की मां सुशीला का कहना है कि टीवी पर आईएमए की पासिंग आउट परेड में बेटे के कंधे पर स्टार लगा देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

पति का था सपना- बेटा बने आर्मी ऑफिसर
मनाेज की मां सुशीला यादव का कहना है कि उनके पति की इच्छा थी कि उनका बेटा आर्मी में जाकर देश की सेवा करे। लेकिन जब मनाेज दाे साल का था तब उनके पिता आर्मी में अपनी सेवा देते हुए शहीद हाे गए। पति के शहीद हाेने के बाद जीवन में काफी परेशानियां आईं लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने शुरू से ही अपने बेटे काे आर्मी स्कूल में पढ़ाया था। उसके बाद मनाेज काे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया। मनाेज के दिल्ली जाने के बाद घर पर मैं और मेरी बेटी ही रह गए। किराये के मकान में रहते हुए काफी कठिनाइयाें का सामना करना पड़ा लेकिन आज मुझे मेरे बेटे ने मेरी मेहनत का हक दे दिया है।

लेफ्टिनेंट मनाेज कुमार बाेले - मां ने नहीं हाेने दिया कभी ऐसा अहसास कि पिता का साया नहीं
आर्मी में लेफ्टिनेंट बने मनोज कुमार यादव का कहना है कि उन्हाेंने 12वीं कक्षा तक आर्मी स्कूल में पढ़ाई की। मां हमेशा कहती थी कि तुम्हारे पिता सपना था कि मेरा बेटा एक दिन आर्मी में ऑफिसर बने। मां आर्मी स्कूल में पढ़ाई कराने के लिए गांव छाेड़कर कैंट एरिया में आ गईं। उन्हाेंने खुद भी टीचिंग की। मां ने मुझे कभी यह अहसास नहीं हाेने दिया कि मुझ पर पिता का साया नहीं। बड़ी बहन ने भी मेरे लिए त्याग किया। उन्हाेंने खुद शहर में रहकर मुझे पढ़ाई के लिए बाहर भेजा। दाेस्ताें का भी इस संघर्ष की कहानी में बड़ा याेगदान रहा है।




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