एचएयू ने तैयार की बायो फ्लॉक और परिशोधन जलीय कृषि तकनीक. बिना तालाब खुदाई किए कम पानी में हो सकेगा ज्यादा मछली उत्पादन - NEWS E HUB

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Monday, 15 June 2020

एचएयू ने तैयार की बायो फ्लॉक और परिशोधन जलीय कृषि तकनीक. बिना तालाब खुदाई किए कम पानी में हो सकेगा ज्यादा मछली उत्पादन
















(महबूब अली)प्रदेश के किसानाें के लिए खुशखबरी है। एचएयू हिसार के कॉलेज ऑफ फिशरीज साइंस के वैज्ञानिकाें ने कम पानी में अधिक मछली पालन के लिए परिशोधन जलीय कृषि व बायो फ्लॉक नामक तकनीक विकसित की है। इससे किसानों की आय दोगुनी होगी। एचएयू में जल्द किसानों को हाईटेक तकनीक से मछली पालन के बारे में प्रशिक्षण भी शुरू किया जाएगा। एचएयू के कुलपति प्रो. केपी सिंह ने तकनीक को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों की सराहना की है।

फिशरीज कॉलेज के वैज्ञानिकों ने तकनीक विकसित कर सराहनीय कार्य किया है। वैज्ञानिक व अन्य काॅलेज के पदाधिकारियों को इसके लिए सम्मानित किया जाएगा। प्रदेश के किसान भी यहां आकर ट्रेनिंग हासिल कर सकेंगे। विवि के लिए ही बहुत बड़ी उपलब्धि है।

जानिए.... क्या है बायो फ्लॉक तकनीक
बायो फ्लॉक अत्याधुनिक तकनीक में किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकेंगे। फिशरीज कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. धर्मवीर मलिक बताते हैं कि मछली की खपत को देखते हुए मत्स्य पालन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीक को अपनाया जा रहा है। इसके लिए कम खर्च में अधिक मछली उत्पादन करने के लिए बायो फ्लॉक तकनीक अहम भूमिका निभाएगी। यह कम लागत और सीमित समय में अधिक उत्पादन देने वाली तकनीक है। इसमें टैंक सिस्टम में उपकारी बैक्टीरिया के द्वारा मछलियों की विष्ठा और अतिरिक्त भोजन को प्रोटीन सेल में परिवर्तित कर मछलियों के भोज्य पदार्थ के रूप में रूपांतरित कर दिया जाता है।

यह है आरएएस यानि परिशोधन जलीय कृषि तकनीक
एचएयू के फिशरीज काॅलेज ऑफ साइंस की इंचार्ज डॉ. अर्चना गुलाटी व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. धर्मवीर मलिक ने बताया कि परिशोधन जलीय कृषि मूल रूप से उत्पादन में पानी का उपयोग करके मछली या अन्य जलीय जीवों के लिए तकनीक है। तकनीक यांत्रिक और जैविक फिल्टर पर आधारित है। इस पद्धति का उपयोग सिद्धांत रूप में किसी भी प्रजाति जैसे मछली कैटला, रोहू, मुरकी, मंगुर आदि के लिए किया जा सकता है। इसमें पानी का भाव निरंतर बनाए रखने के लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है।

इसमें कम पानी और कम जगह की जरूरत होती है। सामान्य तौर पर एक एकड़ तालाब में 20 हजार मछली डाली है तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है। जबकि इस सिस्टम के जरिए 1000 लीटर पानी में 110 से 120 मछली डालते हैं। पानी कितनी मात्रा में परिचालित किया जाता है या उपयोग किया जाता है, इस पर निर्भर करता है। यह तकनीक से प्रतिवर्ष कई टन मछलियां पैदा करने के लिए उपयोग की जाती है, यह सुपर इंटेंसिव फार्मिंग सिस्टम है। जिसे एक बंद इंसुलेटेड बिल्डिंग के अंदर स्थापित किया जाता है।

गुजरात में अपनाई जा रही यह तकनीक
फिशरीज साइंस कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. धर्मवीर सिंह का कहना है कि आरएएस व बायो फ्लॉक तकनीक गुजरात में अपनाई जा रही है। कुछ किसान गुजरात से ही उक्त तकनीक के टैंक लाकर मछली पालन करते हैं मगर अब एचएयू में ही सीख कर दोनों तकनीकों से मछली पालन किया जा सकेगा। बायो फ्लॉक तकनीक में करीब 25 से 30 हजार जबकि आरएएस में 40 से 50 लाख तक का खर्च आता है। तैयार तकनीक को जल्द ही एजेंसी मालिकों को दिया जाएगा।



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